This blog About create a movements for fun, entertainment, lifestyle, health, information, mystery,
Entertainment, travels, historical place, WhatsApp funny message, Hindi jokes, general knowledge, religious, motivation.
फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है। इस बार यह व्रत 2 मार्च को आ रहा है। नाम के अनुसार ही इस एकादशी का व्रत करने वाला सदा विजयी रहता है। प्राचीन काल में कई राजा-महाराजा इस व्रत के प्रभाव से अपनी निश्चित हार को भी जीत में बदल चुके हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने रावण से युद्ध करने से पहले अपनी पूरी सेना के साथ इस व्रत को रखा था। व्रत का महत्व और पूजन विधि
1. इस व्रत के विषय में पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में वर्णन मिलता है। कहा जाता है कि जब जातक शत्रुओं से घिरा हो तब विकट से विकट से परिस्थिति में भी विजया एकादशी के व्रत से जीत सुनिश्चित की जा सकती है। इतना ही नहीं विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण व पठन मात्र से ही व्यक्ति के समस्त पापों का विनाश हो जाता है। साथ ही आत्मबल बढ़ जाता है। विजया एकादशी व्रत करने वाले साधक के जीवन में शुभ कर्मों में वृद्धि, मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है और कष्टों का नाश होता है। जो भी साधक इस एकादशी का व्रत विधिविधान और सच्चे मन से करता है, वह भगवान विष्णु का कृपापात्र बन जाता है। व्रत विधि
इस दिन भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित कर उनकी धूम, दीप, पुष्प, चंदन, फूल, तुलसी आदि से आराधना करें, जिससे कि समस्त दोषों का नाश हो और आपकी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकें। भगवान विष्णु को तुलसी अत्यधिक प्रिय है इसलिए इस दिन तुलसी को आवश्यक रूप से पूजन में शामिल करें। भगवान की व्रत कथा का श्रवण और रात्रि में हरिभजन करते हुए उनसे आपके दुखों का नाश करने की प्रार्थना करें। रात्रि जागकरण का पुण्य फल आपको जरूर ही प्राप्त होगा। व्रत धारण करने से एक दिन पहले ब्रम्हचर्य धर्म का पालन करते हुए व्रती को सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। व्रत धारण करने से व्यक्ति कठिन कार्यों एवं हालातों में विजय प्राप्त करता है।
बालों कीपोषक तत्वों की कमी।
अगर आप बालों को ठीक तरह से
देखभाल करते हैं फिर भी आपके बाल झड़ते हैं, तो इसका
कारण हो सकता है कि आपके शरीर में पोषक तत्वों की
सेकमी हो। आजकल लोगों का खानपान और लाइफस्टाइल
बहुत बदल गई है, जिससे बालों के विकास के लिए पर्याप्त
विटामिन और प्रोटीन शरीर को नहीं मिल पाते हैं। यही
कारण है कि नई पीढ़ी में बहुत कम उम्र में ही लोगों को
बाल झड़ने की समस्याएं हो रही हैं।
विटामिन सी की कमी
से टूटते हैं बाल
इसकी कमी से दो मुंहे बाल, बालों का झड़ना और टूटना आदि
शुरु होता है। अपने आहार में संतरे, नींबू, जामुन, मीठा नींबू,
तरबूज और टमाटर जैसे फल शामिल करें। अगर आप धूम्रपान
करते हैं तो आपको अधिक मात्रा में विटामिन सी की आवश्यकता
है, इसलिए धूम्रपान छोड़कर अधिक फल खाएं।
बालों को झड़ने से रोकने के लिए
आपको अपने डाइट मैं थोड़े से बदलाव
करने चाहिए। आइए आपको बताते हैं कि
बालों की मजबूती के लिए किन आहारों
को खाना लाभप्रद होता है।
अनाज और दाल जरूर खाएं
अनाज और दाल जरूर खाएं
साबुत अनाज में जिंक, विटामिन बी और आयरन जैसे पोषक। तत्व पाए जाते हैं, जो बालों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हं। जिंक उन हार्मोन का संचालन करता है जो बालों को मजबूत, मोटे और लबे बनाते हैं। अगर आप नियमित रूप से जिंक युक्त आहार खा रहे। हैं तो आपके बाल मजबूत होंगे और बालों के गिरने की समस्या समाप्त होगी। हमारे स्कूल में तेल ग्रंथियां होती हैं जो तेल उत्पन्न करने का काम करती हैं और जिसकी कमी से स्कैल्प में सूखापन, रूसी और बालों का झड़ना शुरु हो जाता है। अपने बालों को पर्याप्त मात्रा में जिंक उपलब्ध कराने के लिए दाल का सेवन करें।
विटामिन बी, सी और ई पाए जाते हैं। साथ ही इसमें
पोटैशियम, ओमेगा-3 और कैलशियम भी होता है। यह सब
बालों को झड़ने से रोकता है। रोज एक केला खाने से बाल
मजबूत होते हैं। इसमें शुगर, फाइबर, थाइमिन, नियासिन
और फोलिक एसिड के रूप में विटामिन ए और बी पर्याप्त
मात्रा में मौजूद होता है। गाजर बालों के लिए अच्छी होती
है। यह बालों को बीटा कैरोटीन और विटामिन ए प्रदान
करती है। गाजर खाने से सिर में सीबम पैदा होती है और
बाल बढ़ते हैं। इसके साथ ही चुकंदर भी बालों के लिए
बहुत फायदेमंद होता है। चुकंदर में आयरन और जिंक
दोनों की मात्रा भरपूर होती है। वैज्ञानिक शोधों के
अनुसार चुकंदर में सबसे ज्यादा एंटीऑक्सीडेंट्स पाए
जाते हैं इसलिए इसका सेवन आपके लिए फायदेमंद होता
है।दूध में होता है विटामिन ए अगर बाल बहुत तेजी से
झड़ रहे हैं तो दूध से बने प्रोडक्ट खाने शुरु कीजिये।
बाल प्रोटीन से बने होते हैं ओर डेयरी उत्पादों में प्रोटीन
काफी मात्रा में पाया जाता है। दूध में कार्बोहाइड्रेट्स,
विटामिंस, मिनरल्स होते हैं जो बालों की ग्रोथ के लिए
जरूरी होते ये भी पड़े :- चाणक्य के सफ़लता के नियम
भोपाल एवं विदिशा के बीचोंबीच स्थित छोटा सा सांची नगर सम्राट अशोक के युग के बौद्ध स्तूपों के लिए प्रसिद्ध है।
sanchi stupa
यहां पर वर्ष भर देश-विदेश से सैलानी आते रहते हैं। जिस समय बौद्ध धर्म का दबदबा था, उस समय सांची का वैभव भी अपने चरम पर था। भोपाल एवं विदिशा के बीचो बीच एक छोटी सी पहाड़ी पर
उस दौर की निशानिया सांची में आज भी मौजूद है। उस चरम के अवशेष के रूप में यहां बौद्ध विहार एवं स्तूपों को आज भी देखा जा सकता है। सम्राट अशोक के शासन में सांची बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का प्रमुख केंद्र था । २ पुरानी धरोहरों की उचित देखभाल और संरक्षण के कारण ही सांची ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। और देशी-विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। मध्यप्रदेश विदिशा के उत्तर-पश्चिम में करीब नौ किमी की दूरी पर बसा सांची बीना और भोपाल जंक्शन के बीच में है। स्तूप वन: यहां का बड़ा स्तूप नंबर एक पर । इस स्तुप को विशाल पत्थरों से बना भारत का प्राचीनतम स्तूप भी कहा जा सकता है। यह स्तूप प्राचीन वास्तुकला तथा शिल्प का बेहतरीन नमूना है। इस स्तूप के भीतर एक और आधा स्तूप है। इस स्तूप का व्यास करीब 36.60 मीटर है एवं ऊंचाई लगभग 14.5 मीटर है। इस स्तूप के चारो ओर परिक्रमा पथ बना है। पर्यटकों के लगातार चलने से यह अब चिकना हो गया है। इस स्तूप के चारों ओर जो तोरण द्वार बने हुए
हैं, वह बहुत ही अद्भुत हैं। पत्थरों पर बौद्ध कथाओं का अंकन दूसरे बौद्ध स्मारकों के मुकाबले में सांची में सबसे बढ़िया माना जाता है। इस स्तूप के पूर्वी तथा पश्चिमी द्वारों पर युवा गौतम बुद्ध की आध्यात्मिक यात्रा की अनेकों कहानियां अंकित है। तोरण द्वार विशाल स्तूप के चारों ओर से घेरे खड़े तोरण द्वारों पर बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के अनुसार बुध का चित्रांकन प्रतीक शैली में किया गया है। वक्ष प्रतीक है उनके बोधि ज्ञान का चक्र संकेत करता है उनके उपदेशों का पाद चिन्ह और गद्दी उनके अस्तित्व को दर्शाते है। इन स्तपो के शिलालेख पर उन तमाम लोगों के नाम अंकित है, जिन्होंने वेदिका और भूतल निर्माण में सहयोग किया था। स्तूप : यह पहाड़ी की तलहटी पर बना है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता बलुआ पत्थर का बना कटघरा है। वह उसे चारों ओर से घेरे हुए है। इस स्तूप में कोई तोरण द्वार नही है। इस पर उकेरे गए पशु-पक्षी, फूल-पत्ती, नाग, किन्नरों और मानवो के भित्तिचित्र जीवंत दिखाई पड़ते हैं
ऊपर की छतरी चिकने पत्थर की बनी हुई है।
स्तूप : इस स्तूप के अंदर महात्मा बुद्ध के दो प्रिय शिष्यों के अवशेष मिले है जिन्हें बाद में इंग्लैंड ले जाया गया जहां अर्द्धगोलाकार गुम्बद पर बना चमत्कार पत्थर देखने योग्य है। संग्रहालय प्राचीन भारतीय वास्तुकला और स्थापत्य कला की संपूर्ण जानकारी के लिए वहां स्थित संग्रहालय देखने योग्य है। भारतीय पुरातत्व के इस संग्रहालय में बुद्ध से संबंधित सामग्री जमा की गयी है।
अब आप अशोक स्तंभ देखने जा सकते हैं। इस बौद्ध स्तंभ का निर्माण ईसा पूर्व तीसरी सदी में हुआ था। यह बड़े स्तूप के दक्षिणी द्वार के निकट स्थित है। पर्याप्त देखरेख के अभाव में आज यह स्तंभ जीर्णशीर्ण अवस्था में है।
देश के सबसे बड़े शिवलिगों में से एक है भोजपुरका शिवलिंग
Bhojpur temple
गांव से लगी हुई पहाड़ी पर एक विशाल शिव मंदिर है।
मंदिर पूर्णरुपेण नहीं बन पाया है। इसका चबूतरा बहुत ऊंचा है, जिसके गर्भगृह में एक बड़ा सा पत्थर के टुकड़े का पॉलिश किया गया लिंग है, जिसकी ऊंचाई 3.85 मीटर है। इसे भारत के मंदिरों में पाए जाने वाले सबसे बड़े लिंगों में से एक माना जाता है। विस्तृत चबूतरे पर ही मंदिर के अन्य हिस्सों, मंडप, महामंडप तथा अंतराल बनाने की योजना थी। ऐसा मंदिर के निकट के पत्थरों पर बने मंदिर- योजना से संबद्ध नक्शों से इस बात का स्पष्ट पता चलता है। इस मंदिर के अध्ययन से हमें भारतीय मंदिर की वास्तुकला के बारे में बहुत सी बातों की जानकारी मिलती है। भारत में इस्लाम के आगमन से भी पहले, इस हिंदू मंदिर के गर्भगृह मंदिर के निकट बनवाया गया था बांध के ऊपर बना अधुरा गुम्बदाकार छत भारत में ही गुंबद निर्माण के प्रचलन को प्रमाणित करती है। भले ही उनके निर्माण की तकनीक भिन्न हैं
कुछ विद्वान इसे भारत मे गुम्बदीय छत वाली इमारत मानते है इसमंदिर का दरवाजा भी किसी हिन्दू
इमारत मे सबसे बड़ा है पत्थरों के ऊपर चढ़ने के लिए यहां डाला ने बनाई गई इसका प्रमाण यहां मिलता है मंदिर के निकट स्थित तालाब को राजा भोज ने बनवाया था यहां तालाब के पास शिवलिंग का निर्माण किया जाता था
क्या कहते है पुराने लोग
कुछ बुजुर्गों का कहना है कि मंदिर का निर्माण द्वापर युग में पांडवों द्वारामाता कुंती की पूजा के लिए इस शिवलिंग का निर्माण एक ही रात मेंकिया गया था। विश्व प्रसिद्ध शिवलिंग की ऊंचाई साढ़े इक्कीस फिट,पिंडी का व्यास 18 फिट आठ इंच व जलहरी का निर्माण बीस बाई बीस से हुआ है। इस प्रसिद्ध स्थल पर साल में दो बार वार्षिक मेले का । आयोजन किया जाता है। जो मकर संक्रांति एवं महाशिवरात्रि पर्व होता ।है। एक ही पत्थर से निर्मित इतनी बड़ी शिवलिंग अन्य कहीं नहीं दिखाईदेती है। इस मंदिर की ड्राइंग समीप ही स्थित पहाड़ी पर उभरी हुई है।। जो आज भी दिखाई देती है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि पूर्व में भी। आज की तरह नक्शे बनाकर निर्माण कार्य किए जाते रहे होंगे।
॥ इस मंदिर के महंत पवन गिरी गोस्वामी ने बताया कि उनकी यह 19वीं पीढ़ी है, जो इस मंदिर की पूजा-अर्चना कर रही है। उन्होंने बताया। शिवरात्रि पर्व पर भगवान भोलेनाथ का माता पार्वती से विवाह हुआ था।
बेतवा/कलावती का उद्गम
जोधपुर से कुछ दूरी पर कुमार गांव के निकट सघन वन में वेत्रवती नदी का उद्गम स्थल है। यह नदी एक कुंड से निकलकर बहती है। भोपाल ताल भोजपुर का ही एक तालाब है। इसके बांध को मालवा केशासक होशंगशाह (1405 1434) में अपनी संक्षिप्त यात्रा में अपने बेगम की मलेरिया संबंधी शिकायत पर तोड़ डाला था। इससे हुए जलप्लावन के बीच जो टापू बना वह द्वीप कहा जाने लगा। वर्तमान में यह मंडी द्वीप के नाम से जाना जाता है। इसके आस- पास आज भी कई खंडित सुंदर प्रतिमाएं बिखरी पड़ी हैं। यहां मकर संक्रांति पर मेला भी लगता है।
हमारे देश में कई ऐसे मंदिर हैं जो अपनी अनोखी परंपराओं और रहस्यों के लिए जानें जाते हैं। भोपाल शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर एक ऐसा ही काली माता का एक चमत्कारी मंदिर स्थित है। इस मंदिर की मूर्ति खास बात यह है कि यहां स्थित मां काली की मूर्ति स्वयं ही अपनी गर्दन सीधी कर लेती हैं। यह चमत्कार देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। मान्यता के मुताबिक जिस भक्त को माता की सीधी गर्दन देखने का मौका मिलता है उसके सारे बिगड़े काम बन जाते हैं। मंदिर से जुड़ी विशेष बातें
1. राजधानी से महज 15 किमी दूर रायसेन जिले के गुदावल गांव में मां काली का प्रचीन मंदिर है। यहां मां काली की 20 भुजाओं वाली मूर्ति के साथ भगवान ब्रम्हा, विष्णु और महेश की प्रतिमाए विराजमान हैं। बताया जाता है कि माता की 45 डिग्री झुकी गर्दन कुछ पलों के लिए सीधी हो जाती है। जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। सामान्यतः यहां पूरे साल भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन नवरात्र में भीड़ उमड़ पड़ती है। मंदिर के महंत मंगल दास त्यागी बताते हैं कि मंदिर से जुड़ी अलग-अलग मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि जिन माता-बहनों की गोद सूनी होती है, वह श्रृद्धाभाव से यहां उल्टे हाथ लगाती हैं, उनकी मनोकामना भी अवश्य पूरी हो जाती है। कंकाली मंदिर रायसेन रोड पर स्थित बिलखिरिया गांव से कुछ ही दूरी पर जंगल के बीच बना हुआ है। मंदिर के चारो लगे हरे-भरे पेड़ पौधे यहां सबसे बड़ा आकर्षण है। कब जाएं?
2. वैसे तो यहां सालभर ही भक्तों के आने का क्रम लगा रहता है लेकिन नवरात्रि में मां के दर्शन का विशेष महत्व माना गया है। कैसे पहुंचे? 3. भोपाल लगभग सभी बडे़ शहरो से जुड़ा हुआ है। इसलिए यहां तक रेल, बस या हवाई मार्ग से आसनी से जाया जा सकता है
ऐसा माना जाता है कि 'वेलेंटाइन डे' का नाम संत वेलेंटाइन के नाम पर रखा गया है,
लेकिन क्या आप जानते हैं।
कि प्यार करने वालों का स्पेशल दिन 'वेलेंटाइन-डे' का नाम संत वेलेंटाइन के नाम पर क्यों पड़ा? नहीं, तो आइए हम
आपको बताते हैं। दरअसल रोम में तीसरी सदी में क्लॉडियस नाम के राजा का राज हुआ करता था। क्लॉडियस का
मानना था कि विवाह करने से पुरुषों की शक्ति और बुद्धि खत्म हो जाती है। इसी के चलते उसने पूरे राज्य में यह
आदेश जारी कर दिया कि उसका कोई भी सैनिक या अधिकारी शादी नहीं करेगा, लेकिन संत वेलेंटाइन ने क्लॉडियस
के इस आदेश पर कड़ा विरोध जताया और पूरे राज्य में लोगों को विवाह करने के लिए प्रेरित किया। संत वेलेंटाइन ने
अनेक सैनिकों और अधिकारियों का विवाह करवाया। अपने आदेश का विरोध देख आखिर क्लॉडियस ने 14 फरवरी
सन् 269 को संत वेलेंटाइन को फांसी पर चढ़वा दिया। तब से उनकी याद में यह दिन मनाया जाने लगा।
14 फरवरी को मनाए जाने वाले इस
दिन के विभिन्न देशों में अलग
अंदाज और विश्वास के साथ मनाया
जाता है। जहां चीन में यह दिन
‘नाइट्स ऑफ सेवेन्स' के नाम से
मनाया जाता है, वहीं जापान और
कोरिया में इस दिन
को वाइट
डे का नाम
से जाना जाता है. ।
इतना ही नहीं, इन देशों
में इस दिन से लेकर पूरे एक महीने
तक लोग अपने प्यार का इजहार करते हैं।
और एक-दूसरे को तोहफे एवं फूल देकर
अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं।
पश्चिमी देशों में पारंपरिक रूप से इसे
मनाने के लिए वेलेंटाइन-डे' के नाम से
कार्ड आदान-प्रदान तो किया ही जाता है,
साथ ही दिल, क्यूपिड, फूलों और ग्रीटिंग
कार्ड कैसे प्रेम के चिह्नों को उपहार स्वरूप
देकर अपनी भावनाओं का भी
इजहार किया जाता है।
न जिद है न कोई गुरूर है हमे, बस तुम्हे पाने का सुरूर है हमे, इश्क गुनाह है तो गलती की हमने, सजा जो भी हो मंजूर है हमे। यह भी पढ़ें :- कुंभ मेला क्यों लगता है सोती हुई आँखों को सलाम हमारा मीठे सुनहरें सपनों को आदाब हमारा, दिल मे रहे प्यार का एहसास सदा ज़िंदा, आज की रात का यही है पैग़ाम हमारा।
बसंत पंचमी पर ये है सरस्वती पूजन का शुभ मुहूर्त और विधि,जानें मां सरस्वती को खुश करने के उपाय माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को सरस्वती की पूजा के दिन के रूप में भी मनाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों में ऐसी मान्यता है कि इसी दिन शब्दों की शक्ति ने मनुष्य के जीवन में प्रवेश किया था। नई दिल्ली। माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को सरस्वती की पूजा के दिन के रूप में भी मनाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों में ऐसी मान्यता है कि इसी दिन शब्दों की शक्ति ने मनुष्य के जीवन में प्रवेश किया था। पुराणों में लिखा है सृष्टि को वाणी देने के लिए ब्रह्मा जी ने कमंडल से जल लेकर चारों दिशाओं में छिड़का था। इस जल से हाथ में वीणा धारण कर जो शक्ति प्रकट हुई वह सरस्वती देवी कहलाई। उनके वीणा का तार छेड़ते ही तीनों लोकों में ऊर्जा का संचार हुआ और सबको शब्दों में वाणी मिल गई। वह दिन बसंत पंचमी का दिन था इसलिए बसंत पंचमी को सरस्वती देवी का दिन भी माना जाता है।
शास्त्रों में बसंत पंचमी के दिन कई नियम बनाए गए हैं, जिसका पालन करने से मां सरस्वती प्रसन्न होती हैं। बसंत पंचमी के दिन पीले वस्त्र पहनने चाहिए और मां सरस्वती की पीले और सफेद रंग के फूलों से ही पूजा करनी चाहिए।
मां सरस्वती की पूजा विधि-
– सुबह स्नान करके पीले या सफेद वस्त्र धारण करें। – मां सरस्वती की मूर्ति या चित्र उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करें। – मां सरस्वती को सफेद चंदन, पीले और सफेद फूल अर्पित करें। – उनका ध्यान कर ऊं ऐं सरस्वत्यै नम: मंत्र का 108 बार जाप करें। – मां सरस्वती की आरती करें और दूध, दही, तुलसी, शहद मिलाकर पंचामृत का प्रसाद बनाकर मां को भोग लगाएं।
– सरस्वती माता पीले फल, मालपुए और खीर का भोग लगाने से माता सरस्वती शीघ्र प्रसन्न होती हैं। – बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती को बेसन के लड्डू अथवा बेसन की बर्फी, बूंदी के लड्डू अथवा बूंदी का प्रसाद चढ़ाएं। – श्रेष्ठ सफलता प्राप्ति के लिए देवी सरस्वती पर हल्दी चढ़ाकर उस हल्दी से अपनी पुस्तक पर “ऐं” लिखें। – बसंत पंचमी के दिन कटु वाणी से मुक्ति हेतु, वाणी में मधुरता लाने के लिए देवी सरस्वती पर चढ़ी शहद को नित्य प्रात: सबसे पहले थोड़ा सा अवश्य चखें। – बसंत पंचमी के दिन गहनें, कपड़ें, वाहन आदि की खरीदारी आदि भी अति शुभ मानी जाती है। क्या करें अगर एकाग्रता की समस्या है? – जिन लोगों को एकाग्रता की समस्या हो। – आज से नित्य प्रातः सरस्वती वंदना का पाठ करें। – बुधवार को मां सरस्वती को सफ़ेद फूल अर्पित किया करें। अगर सुनने या बोलने की समस्या होती है? – सोने या पीतल के चौकोर टुकड़े पर मां सरस्वती के बीज मंत्र को लिखकर धारण कर सकते हैं। – बीज मंत्र है “ऐं” – इसको धारण करने पर मांस मदिरा का प्रयोग न करें। अगर संगीत या कला के क्षेत्र में सफलता पानी है? – आज केसर अभिमंत्रित करके जीभ पर “ऐं” लिखवाएं। – किसी धार्मिक व्यक्ति या माता से लिखवाना अच्छा होगा।
आज के दिन सामान्य रूप से क्या-क्या करना बहुत अच्छा होगा? – आज के दिन मां सरस्वती को कलम अवश्य अर्पित करें और वर्ष भर उसी कलम का प्रयोग करें। – पीले या सफ़ेद वस्त्र जरूर धारण करें और काले रंग से बचाव करें। – केवल सात्विक भोजन करें तथा प्रसन्न रहें और स्वस्थ रहें। – आज के दिन पुखराज और मोती धारण करना बहुत लाभकारी होता है। – आज के दिन स्फटिक की माला को अभिमंत्रित करके धारण करना भी श्रेष्ठ परिणाम देता है।
1200 ईस्वी में निर्मित यह किला मध्यप्रदेश का एक प्रमुख आकर्षण है।पहाड़ी की चोटी पर इस किले के निर्माण के बाद रायसेन कोइसकी पहचान प्राप्त हुई। बलुआ पत्थर से बना0 हुआ यह किला प्राचीन वास्तुकला एवंगुणवत्ता का एक अद्भुत प्रमाण है, जो इतनी शताब्दियां बीत जाने पर भी शान से खड़ा
किले के आसपास के क्षेत्र में भी कई प्राचीन गुफाएं एवं भित्ति चित्र हैं जो हमारे देश के प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति के बारे में बतातेहैं। रायसेन जिला रेल एवं सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है।
भोपाल से रायसेन पहुंचने के लिए अनेक वाहन उपलब्ध हैं।
रायसेन किले के अंदर जो भवन हैं उनमें बादल महल, रोहिणी महल, इत्रदान महलऔर हवा महल प्रमुख हैं। ऊपर ही 12 वीं सदी के एक शिव मंदिर के होने की भी पुष्टि होती है जिसके पट वर्ष में एक बार महाशिवरात्रि के दिन खोले जाते हैं। लोहे के दरवाजे गिलं गेट में मन्नत मांगते हा रंगीन कपड़े या धागे को बांधने की परंपरा बन गई
है। कुछ लोग तो प्लास्टिक की पन्नियों को ही बांध जाते हैं। उसी पह्मड़ी से लगी हुई कई
कहा जाता है कि इस किले में पारस पत्थर है, जिसकी रखवाली जिन्न करते हैं।
पहाडी की चोटी पर बलुआ पत्थर से बना हुआ ये किलो प्राचीन वास्तुकला एवं गणवत्ता का एक अद्भुत प्रमाण है जो इतनी शताब्दियां बीत जाने पर भी शान से खड़ा हुआ है।
इसी किले में दुनिया का सबसे पुराना वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम है। इस किले पर शेरशाह सरी ने भी शासन किया था। कहा जाता है यहां के राजा के पास पारस पत्थर था, जिसे किसी भी चीज को छुत्लाभर देने से वह सोना हो जाती थी। कहा जाता है कि इसी पारस पत्थर के लिए कई युद्ध हुए यहां के राजा रायसेन ने हारने के बाद पारस पत्थर को कुएं में फेंक दिया वह कुआं आज भी स्थित है
राजा की मौत के बाद यह किला वीरान हो गया। इसके बावजूद उस पारस पत्थर का ढूंढने उस किले में बहुत से लोग गए। ऐसा भी कहा जाता है कि जो भी किले में पत्थर को ढूंढने जाता, उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता। इसके पीछे का कारण बताया गया कि क्योंकि उस पारस पत्थर की रखवाली जिन्न करते हैं। यही वजह है कि उसको ढूंढने के लिए जाने वाला हर इंसान मानसिक संतुलन खो देता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कुंभ छठे और महाकुंभ बारहवें वर्ष लगता है। लेकिन प्रयाग में माघ मेला प्रत्येक वर्ष लगता है जिसमें एक माह तक कल्पवासी कड़ाके की ठंड में एक कठिन जिंदगी जी कर अपने कल्पवास को पूरा करते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के बाद प्राप्त हुए अमृत को लेकर देवताओं और राक्षसों में विवाद हुआ था। अगर राक्षस अमृत पीने में सफल हो जाते तो वह अमरत्व प्राप्त कर लेते। यही वजह थी कि देवता, राक्षसों को अमृत नहीं देना चाहते थे। जब देवता अमृत को लेकर आकाश मार्ग से जा रहे थे उसी समय चार जगहों पर अमृत छलक गया था। इन चार स्थानों प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में कुंभ का मेला लगता है।
ग्रहों की चाल पर निर्भर करता है कुंभ मेला :
कुंभ मेला कब और कहां लगेगा यह ग्रहों की चाल पर निर्भर करता है। दरअसल कुंभ मेले के आयोजन में बृहस्पति ग्रह की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि गोचर में जब बृहस्पति ग्रह वृश्चिक राशि में प्रवेश करता है, उस वर्ष प्रयाग में अर्ध कुंभ (वर्तमान में कुंभ मेले) का आयोजन किया जाता है।
बृहस्पति के वृश्चिक राशि में प्रवेश करने के बाद जब माघ का महीना आता है, तब गंगा और यमुना के तट पर मेले की शुरुआत होती है। माघ के महीने में मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी के अवसर पर सभी अखाड़े शाही स्नान करते हैं। अमावस्या को कुंभ दिवस भी कहा जाता है। अमावस्या के दिन करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु गंगा और संगम में स्नान करते हैं।
कुंभ की शुरुआत मकर संक्रांति के दिन पहले स्नान से होगी। इसे शाही स्नान और राजयोगी स्नान के नाम से भी जानते हैं। इस दिन संगम, प्रयागराज पर विभिन्न अखाड़ों के संत की पहली शोभा यात्रा निकलती है फिर शाही स्नान का आयोजन होता है। मकर संक्रांति पर सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश होता है। इस दिन स्नान के बाद सूर्य को जल देकर चावल और तिल को स्पर्श कर उसे दान में दिया जाता है। इस दिन उड़द दाल की खिचड़ी या दही-चूड़ा खाना जरूरी होता है।
पौष पूर्णिमा :
पौष पूर्णिमा 21 जनवरी को है और इस दिन कुंभ में दूसरा बड़ा आयोजन होगा। पौष पूर्णिमा के दिन से ही माघ महीने की शुरुआत होती है। कहा जाता है आज के दिन स्नान ध्यान के बाद दान पुण्य करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन से सभी शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। वहीं, इस दिन संगम पर सुबह स्नान के बाद कुंभ की अनौपचारिक शुरुआत हो जाती है। इस दिन से कल्पवास आरंभ हो जाता है।
पौष एकादशी :
पौष एकादशी को कुंभ में तीसरे बड़े शाही स्नान का आयोजन होगा। 31 जनवरी को स्नान के बाद दान पुण्य किया जाता है।
मौनी अमावस्या :
कुंभ मेले में चौथा शाही स्नान मौनी अमावस्या यानि 4 फरवरी को होगा। इसी दिन कुंभ के पहले तीर्थाकर ऋषभ देव ने अपनी लंबी तपस्या का मौन व्रत तोड़ा था और संगम के पवित्र जल में स्नान किया था। इसलिए मौनी अमावस्या के दिन कुंभ मेले में बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें लाखों की संख्या में भीड़ उमड़ती है।
बसंत पंचमी :
10 फरवरी को बसंत पंचमी यानि माघ महीने की पंचमी तिथि को मनाई जाएगी। बसंत पंचमी के दिन से ही बसंत ऋतु शुरू हो जाती है। कड़कड़ाती ठंड के सुस्त मौसम के बाद बसंत पंचमी से ही प्रकृति की छटा देखते ही बनती है। वहीं, हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है।
माघी पूर्णिमा :
19 फरवरी को छठा शाही स्नान, माघ पूर्णिमा को होगा। माघ पूर्णिमा पर किए गए दान-धर्म और स्नान का विशेष महत्व होता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि माघ पूर्णिमा पर खुद भगवान विष्णु गंगा जल में निवास करते हैं। माघ मास स्वयं भगवान विष्णु का स्वरूप बताया गया है। पूरे महीने स्नान-दान नहीं करने की स्थिति में केवल माघ पूर्णिमा के दिन तीर्थ में स्नान किया जाए तो संपूर्ण माघ मास के स्नान का पूर्ण फल मिलता है।
16 फरवरी को सातवां शाही स्नान, माघी एकादशी को होगा। इसदिन का पुराणों में बहुत महत्व है। इस दिन दान देना कई पापों को क्षम्य बना देता है।
महाशिवरात्रि :
कुंभ मेले का आखिरी शाही स्नान 4 मार्च को महा शिवरात्रि के दिन होगा। इस दिन सभी कल्पवासी अंतिम स्नान कर अपने घरों को लौट जाते हैं। भगवान शिव और माता पार्वती के इस पावन पर्व पर कुंभ में आए सभी भक्त संगम में डुबकी जरूर लगाते हैं। मान्यता है कि इस पर्व का देवलोक में भी इंतजार रहता है।
अगर नहीं जा सकते प्रयागराज तो करें ये कार्य
प्रयागे माघ पर्यंत त्रिवेणी संगमे शुभे।
निवास: पुण्यशीलानां कल्पवासो हि कश्यते॥ (पद्मपुरण)
कुंभ में सभी लोग नहीं जा पाते हैं, लेकिन जाने का सोचते जरूर हैं। यह समय दान, जप, ध्यान और संयम का समय रहता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि कुंभ में जाए बगैर ही कैसे पुण्य लाभ कमाया जा सकता है? कुंभ में इस वक्त कल्पवास चल रहा है। कुंभ में जहां स्नान करने का महत्व है वहीं कल्पवास में नियम-धर्म का पालन करने का महत्व है। दूसरी ओर कुंभ में प्रवचन सुन कर, दान करके और पितरों के लिए तर्पण करके लोग पुण्य लाभ कमाते हैं। अगर आप चाहें तो अपने स्थान पर भी ये सब कुछ करके पुण्य लाभ कमा सकते हैं…
प्रतिदिन हल्दी मिले बेसन से स्नान करने के पश्चात सुबह-शाम संध्यावंदन करते समय भगवान विष्णु का ध्यान करें और निम्न मंत्र-क्रिया से स्वयं को पवित्र करें।
संध्यावंदन का मंत्र
ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा।
य: स्मरेत पुण्डरीकांक्ष से बाह्याभ्यंतर: शुचि।
हाथ में नारियल, पुष्प व द्रव्य लेकर यह मंत्र पढ़ें। इसके बाद आचमन करते हुए गणेश, गंगा, यमुना, सरस्वती, त्रिवेणी, माधव, वेणीमाधव और अक्षयवट की स्तुति करें।
जब तक कुंभ चल रहा हैं तब तक प्रतिदिन एक वक्त का सादा भोजन करें और मौन रहें। आप किसी योग्य व्यक्ति को दान दे सकते हैं। दान में अन्नदान, वस्त्रदान, तुलादान, फलदान, तिल या तेलदान कर सकते हैं। गाय, कुत्ते, पक्षी, कौए, चींटी और मछली को भोजन खिलाएं। गाय को खिलाने से घर की पीड़ा दूर होगी। कुत्ते को खिलाने से दुश्मन आपसे दूर रहेंगे।
कौए को खिलाने से आपके पितृ प्रसन्न रहेंगे। पक्षी को खिलाने से व्यापार-नौकरी में लाभ होगा। चींटी को खिलाने से कर्ज समाप्त होगा और मछली को खिलाने से समृद्धि बढ़ेगी। आप संकल्प लें कि किसी किसी भी तरह के नशे का सेवन नहीं करेंगे। क्रोध और द्वेष वश कोई कार्य नहीं करेंगे, बुरी संगत और कुवचनों का त्याग करेंगे और सदा माता-पिता व गुरु की सेवा करेंगे।