कुम्भ मेला क्यों मनाया जाता है
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kumbh mela ki jankari |
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कुंभ छठे और महाकुंभ बारहवें वर्ष लगता है। लेकिन प्रयाग में माघ मेला प्रत्येक वर्ष लगता है जिसमें एक माह तक कल्पवासी कड़ाके की ठंड में एक कठिन जिंदगी जी कर अपने कल्पवास को पूरा करते हैं।
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पौराणिक मान्यता :
पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के बाद प्राप्त हुए अमृत को लेकर देवताओं और राक्षसों में विवाद हुआ था। अगर राक्षस अमृत पीने में सफल हो जाते तो वह अमरत्व प्राप्त कर लेते। यही वजह थी कि देवता, राक्षसों को अमृत नहीं देना चाहते थे। जब देवता अमृत को लेकर आकाश मार्ग से जा रहे थे उसी समय चार जगहों पर अमृत छलक गया था। इन चार स्थानों प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में कुंभ का मेला लगता है।
ग्रहों की चाल पर निर्भर करता है कुंभ मेला :
कुंभ मेला कब और कहां लगेगा यह ग्रहों की चाल पर निर्भर करता है। दरअसल कुंभ मेले के आयोजन में बृहस्पति ग्रह की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि गोचर में जब बृहस्पति ग्रह वृश्चिक राशि में प्रवेश करता है, उस वर्ष प्रयाग में अर्ध कुंभ (वर्तमान में कुंभ मेले) का आयोजन किया जाता है।
बृहस्पति के वृश्चिक राशि में प्रवेश करने के बाद जब माघ का महीना आता है, तब गंगा और यमुना के तट पर मेले की शुरुआत होती है। माघ के महीने में मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी के अवसर पर सभी अखाड़े शाही स्नान करते हैं। अमावस्या को कुंभ दिवस भी कहा जाता है। अमावस्या के दिन करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु गंगा और संगम में स्नान करते हैं।
मकर संक्रांति :
कुंभ की शुरुआत मकर संक्रांति के दिन पहले स्नान से होगी। इसे शाही स्नान और राजयोगी स्नान के नाम से भी जानते हैं। इस दिन संगम, प्रयागराज पर विभिन्न अखाड़ों के संत की पहली शोभा यात्रा निकलती है फिर शाही स्नान का आयोजन होता है। मकर संक्रांति पर सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश होता है। इस दिन स्नान के बाद सूर्य को जल देकर चावल और तिल को स्पर्श कर उसे दान में दिया जाता है। इस दिन उड़द दाल की खिचड़ी या दही-चूड़ा खाना जरूरी होता है।
पौष पूर्णिमा :
पौष पूर्णिमा 21 जनवरी को है और इस दिन कुंभ में दूसरा बड़ा आयोजन होगा। पौष पूर्णिमा के दिन से ही माघ महीने की शुरुआत होती है। कहा जाता है आज के दिन स्नान ध्यान के बाद दान पुण्य करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन से सभी शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। वहीं, इस दिन संगम पर सुबह स्नान के बाद कुंभ की अनौपचारिक शुरुआत हो जाती है। इस दिन से कल्पवास आरंभ हो जाता है।
पौष एकादशी :
पौष एकादशी को कुंभ में तीसरे बड़े शाही स्नान का आयोजन होगा। 31 जनवरी को स्नान के बाद दान पुण्य किया जाता है।
मौनी अमावस्या :
कुंभ मेले में चौथा शाही स्नान मौनी अमावस्या यानि 4 फरवरी को होगा। इसी दिन कुंभ के पहले तीर्थाकर ऋषभ देव ने अपनी लंबी तपस्या का मौन व्रत तोड़ा था और संगम के पवित्र जल में स्नान किया था। इसलिए मौनी अमावस्या के दिन कुंभ मेले में बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें लाखों की संख्या में भीड़ उमड़ती है।
बसंत पंचमी :
10 फरवरी को बसंत पंचमी यानि माघ महीने की पंचमी तिथि को मनाई जाएगी। बसंत पंचमी के दिन से ही बसंत ऋतु शुरू हो जाती है। कड़कड़ाती ठंड के सुस्त मौसम के बाद बसंत पंचमी से ही प्रकृति की छटा देखते ही बनती है। वहीं, हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है।
माघी पूर्णिमा :
19 फरवरी को छठा शाही स्नान, माघ पूर्णिमा को होगा। माघ पूर्णिमा पर किए गए दान-धर्म और स्नान का विशेष महत्व होता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि माघ पूर्णिमा पर खुद भगवान विष्णु गंगा जल में निवास करते हैं। माघ मास स्वयं भगवान विष्णु का स्वरूप बताया गया है। पूरे महीने स्नान-दान नहीं करने की स्थिति में केवल माघ पूर्णिमा के दिन तीर्थ में स्नान किया जाए तो संपूर्ण माघ मास के स्नान का पूर्ण फल मिलता है।
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माघ एकादशी :
16 फरवरी को सातवां शाही स्नान, माघी एकादशी को होगा। इसदिन का पुराणों में बहुत महत्व है। इस दिन दान देना कई पापों को क्षम्य बना देता है।
महाशिवरात्रि :
कुंभ मेले का आखिरी शाही स्नान 4 मार्च को महा शिवरात्रि के दिन होगा। इस दिन सभी कल्पवासी अंतिम स्नान कर अपने घरों को लौट जाते हैं। भगवान शिव और माता पार्वती के इस पावन पर्व पर कुंभ में आए सभी भक्त संगम में डुबकी जरूर लगाते हैं। मान्यता है कि इस पर्व का देवलोक में भी इंतजार रहता है।
अगर नहीं जा सकते प्रयागराज तो करें ये कार्य
प्रयागे माघ पर्यंत त्रिवेणी संगमे शुभे।
निवास: पुण्यशीलानां कल्पवासो हि कश्यते॥ (पद्मपुरण)
कुंभ में सभी लोग नहीं जा पाते हैं, लेकिन जाने का सोचते जरूर हैं। यह समय दान, जप, ध्यान और संयम का समय रहता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि कुंभ में जाए बगैर ही कैसे पुण्य लाभ कमाया जा सकता है? कुंभ में इस वक्त कल्पवास चल रहा है। कुंभ में जहां स्नान करने का महत्व है वहीं कल्पवास में नियम-धर्म का पालन करने का महत्व है। दूसरी ओर कुंभ में प्रवचन सुन कर, दान करके और पितरों के लिए तर्पण करके लोग पुण्य लाभ कमाते हैं। अगर आप चाहें तो अपने स्थान पर भी ये सब कुछ करके पुण्य लाभ कमा सकते हैं…
प्रतिदिन हल्दी मिले बेसन से स्नान करने के पश्चात सुबह-शाम संध्यावंदन करते समय भगवान विष्णु का ध्यान करें और निम्न मंत्र-क्रिया से स्वयं को पवित्र करें।
संध्यावंदन का मंत्र
ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा।
य: स्मरेत पुण्डरीकांक्ष से बाह्याभ्यंतर: शुचि।
इस मंत्र से आचमन करें
ऊँ केशवायनम: ऊँ माधवाय नम: ऊँ नाराणाय नम: का जाप करें।
हाथ में नारियल, पुष्प व द्रव्य लेकर यह मंत्र पढ़ें। इसके बाद आचमन करते हुए गणेश, गंगा, यमुना, सरस्वती, त्रिवेणी, माधव, वेणीमाधव और अक्षयवट की स्तुति करें।
जब तक कुंभ चल रहा हैं तब तक प्रतिदिन एक वक्त का सादा भोजन करें और मौन रहें। आप किसी योग्य व्यक्ति को दान दे सकते हैं। दान में अन्नदान, वस्त्रदान, तुलादान, फलदान, तिल या तेलदान कर सकते हैं। गाय, कुत्ते, पक्षी, कौए, चींटी और मछली को भोजन खिलाएं। गाय को खिलाने से घर की पीड़ा दूर होगी। कुत्ते को खिलाने से दुश्मन आपसे दूर रहेंगे।
कौए को खिलाने से आपके पितृ प्रसन्न रहेंगे। पक्षी को खिलाने से व्यापार-नौकरी में लाभ होगा। चींटी को खिलाने से कर्ज समाप्त होगा और मछली को खिलाने से समृद्धि बढ़ेगी। आप संकल्प लें कि किसी किसी भी तरह के नशे का सेवन नहीं करेंगे। क्रोध और द्वेष वश कोई कार्य नहीं करेंगे, बुरी संगत और कुवचनों का त्याग करेंगे और सदा माता-पिता व गुरु की सेवा करेंगे।
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