Wednesday, 20 February 2019

sanchi stupa

भोपाल एवं विदिशा के बीचोंबीच स्थित छोटा सा सांची नगर सम्राट अशोक के युग के बौद्ध स्तूपों के लिए प्रसिद्ध है।

sanchi stupa
sanchi stupa


यहां पर वर्ष भर देश-विदेश से सैलानी आते रहते हैं। जिस समय बौद्ध धर्म का दबदबा था, उस समय सांची का वैभव भी अपने चरम पर था। भोपाल एवं विदिशा के बीचो बीच एक छोटी सी पहाड़ी पर

स्थित सांची स्तूप मौर्य सम्राट अशोक ने बनवाया था




उस दौर की निशानिया सांची में आज भी मौजूद है। उस
चरम के अवशेष के रूप में यहां बौद्ध विहार एवं स्तूपों को
आज भी देखा जा सकता है। सम्राट अशोक के शासन
में सांची बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का प्रमुख केंद्र था । २
पुरानी धरोहरों की उचित देखभाल और संरक्षण के कारण
ही सांची ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है।
और देशी-विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है।
मध्यप्रदेश विदिशा के उत्तर-पश्चिम में करीब नौ किमी की
दूरी पर बसा सांची बीना और भोपाल जंक्शन के बीच में है।
स्तूप वन: यहां का बड़ा स्तूप नंबर एक पर । इस स्तुप को
विशाल पत्थरों से बना भारत का प्राचीनतम स्तूप भी कहा
जा सकता है। यह स्तूप प्राचीन वास्तुकला तथा शिल्प का
बेहतरीन नमूना है। इस स्तूप के भीतर एक और आधा स्तूप
है। इस स्तूप का व्यास करीब 36.60 मीटर है एवं ऊंचाई
लगभग 14.5 मीटर है। इस स्तूप के चारो ओर परिक्रमा
पथ बना है। पर्यटकों के लगातार चलने से यह अब चिकना
हो गया है। इस स्तूप के चारों ओर जो तोरण द्वार बने हुए

कुम्भ मेला क्यों मनाया जाता है
हैं, वह बहुत ही अद्भुत हैं। पत्थरों पर बौद्ध कथाओं का
अंकन दूसरे बौद्ध स्मारकों के मुकाबले में सांची में सबसे
बढ़िया माना जाता है। इस स्तूप के पूर्वी तथा पश्चिमी द्वारों
पर युवा गौतम बुद्ध की आध्यात्मिक यात्रा की अनेकों
कहानियां अंकित है।

तोरण द्वार विशाल स्तूप के चारों ओर से घेरे खड़े
तोरण द्वारों पर बौद्ध धर्म के सिद्धांतों के अनुसार बुध का
चित्रांकन प्रतीक शैली में किया गया है। वक्ष प्रतीक है उनके
बोधि ज्ञान का चक्र संकेत करता है उनके उपदेशों का पाद
चिन्ह और गद्दी उनके अस्तित्व को दर्शाते है। इन स्तपो के
शिलालेख पर उन तमाम लोगों के नाम अंकित है, जिन्होंने
वेदिका और भूतल निर्माण में सहयोग किया था।
स्तूप : यह पहाड़ी की तलहटी पर बना है। इसकी सबसे
बड़ी विशेषता बलुआ पत्थर का बना कटघरा है। वह उसे
चारों ओर से घेरे हुए है। इस स्तूप में कोई तोरण द्वार नही
है। इस पर उकेरे गए पशु-पक्षी, फूल-पत्ती, नाग, किन्नरों
और मानवो के भित्तिचित्र जीवंत दिखाई पड़ते हैं


ऊपर की छतरी चिकने पत्थर की बनी हुई है।

स्तूप : इस स्तूप के अंदर महात्मा बुद्ध के दो प्रिय शिष्यों के
अवशेष मिले है जिन्हें बाद में इंग्लैंड ले जाया गया जहां
अर्द्धगोलाकार गुम्बद पर बना चमत्कार पत्थर देखने योग्य है।
संग्रहालय प्राचीन भारतीय वास्तुकला और स्थापत्य कला
की संपूर्ण जानकारी के लिए वहां स्थित संग्रहालय देखने
योग्य है। भारतीय पुरातत्व के इस संग्रहालय में बुद्ध से
संबंधित सामग्री जमा की गयी है।

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अशोक स्तंभ



अब आप अशोक स्तंभ देखने जा
सकते हैं। इस बौद्ध स्तंभ का
निर्माण ईसा पूर्व तीसरी सदी में
हुआ था। यह बड़े स्तूप के दक्षिणी
द्वार के निकट स्थित है। पर्याप्त देखरेख के अभाव में आज
यह स्तंभ जीर्णशीर्ण अवस्था में है।

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