देश के सबसे बड़े शिवलिगों में से एक है भोजपुरका शिवलिंग
मंदिर पूर्णरुपेण नहीं बन पाया है। इसका चबूतरा बहुत ऊंचा है, जिसके गर्भगृह में एक बड़ा सा पत्थर के टुकड़े का पॉलिश किया गया लिंग है, जिसकी ऊंचाई 3.85 मीटर है। इसे भारत के मंदिरों में पाए जाने वाले सबसे बड़े लिंगों में से एक माना जाता है। विस्तृत चबूतरे पर ही मंदिर के अन्य हिस्सों, मंडप, महामंडप तथा अंतराल बनाने की योजना थी। ऐसा मंदिर के निकट के पत्थरों पर बने मंदिर- योजना से संबद्ध नक्शों से इस बात
का स्पष्ट पता चलता है। इस मंदिर के अध्ययन से हमें भारतीय मंदिर
की वास्तुकला के बारे में बहुत सी बातों की जानकारी मिलती है।
भारत में इस्लाम के आगमन से भी पहले, इस हिंदू मंदिर के गर्भगृह
मंदिर के निकट बनवाया गया था बांध
के ऊपर बना अधुरा गुम्बदाकार छत भारत में ही गुंबद निर्माण के
प्रचलन को प्रमाणित करती है। भले ही उनके निर्माण की तकनीक भिन्न हैं
का स्पष्ट पता चलता है। इस मंदिर के अध्ययन से हमें भारतीय मंदिर
की वास्तुकला के बारे में बहुत सी बातों की जानकारी मिलती है।
भारत में इस्लाम के आगमन से भी पहले, इस हिंदू मंदिर के गर्भगृह
मंदिर के निकट बनवाया गया था बांध
के ऊपर बना अधुरा गुम्बदाकार छत भारत में ही गुंबद निर्माण के
प्रचलन को प्रमाणित करती है। भले ही उनके निर्माण की तकनीक भिन्न हैं
कुछ विद्वान इसे भारत मे गुम्बदीय छत वाली इमारत मानते है इसमंदिर का दरवाजा भी किसी हिन्दू
इमारत मे सबसे बड़ा है पत्थरों के ऊपर चढ़ने के लिए यहां डाला ने बनाई गई इसका प्रमाण यहां मिलता है मंदिर के निकट स्थित तालाब को राजा भोज ने बनवाया था यहां तालाब के पास शिवलिंग का निर्माण किया जाता था
क्या कहते है पुराने लोग
कुछ बुजुर्गों का कहना है कि मंदिर का निर्माण द्वापर युग में पांडवों द्वारामाता कुंती की पूजा के लिए इस शिवलिंग का निर्माण एक ही रात मेंकिया गया था। विश्व प्रसिद्ध शिवलिंग की ऊंचाई साढ़े इक्कीस फिट,पिंडी का व्यास 18 फिट आठ इंच व जलहरी का निर्माण बीस बाई बीस
से हुआ है। इस प्रसिद्ध स्थल पर साल में दो बार वार्षिक मेले का ।
आयोजन किया जाता है। जो मकर संक्रांति एवं महाशिवरात्रि पर्व होता ।है। एक ही पत्थर से निर्मित इतनी बड़ी शिवलिंग अन्य कहीं नहीं दिखाईदेती है। इस मंदिर की ड्राइंग समीप ही स्थित पहाड़ी पर उभरी हुई है।। जो आज भी दिखाई देती है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि पूर्व में भी। आज की तरह नक्शे बनाकर निर्माण कार्य किए जाते रहे होंगे।
19 वीं पीढ़ी कर रही है पूजा-अर्चना ।
॥ इस मंदिर के महंत पवन गिरी गोस्वामी ने बताया कि उनकी यह 19वीं पीढ़ी है, जो इस मंदिर की पूजा-अर्चना कर रही है। उन्होंने बताया। शिवरात्रि पर्व पर भगवान भोलेनाथ का माता पार्वती से विवाह हुआ था।
बेतवा/कलावती का उद्गम
जोधपुर से कुछ दूरी पर कुमार गांव के निकट सघन वन में वेत्रवती
नदी का उद्गम स्थल है। यह नदी एक कुंड से निकलकर बहती है।
भोपाल ताल भोजपुर का ही एक तालाब है। इसके बांध को मालवा केशासक होशंगशाह (1405 1434) में अपनी संक्षिप्त यात्रा में अपने बेगम की मलेरिया संबंधी शिकायत पर तोड़ डाला था। इससे हुए जलप्लावन के बीच जो टापू बना वह द्वीप कहा जाने लगा। वर्तमान में
यह मंडी द्वीप के नाम से जाना जाता है। इसके आस- पास आज भी
कई खंडित सुंदर प्रतिमाएं बिखरी पड़ी हैं। यहां मकर संक्रांति पर
मेला भी लगता है।
नदी का उद्गम स्थल है। यह नदी एक कुंड से निकलकर बहती है।
भोपाल ताल भोजपुर का ही एक तालाब है। इसके बांध को मालवा केशासक होशंगशाह (1405 1434) में अपनी संक्षिप्त यात्रा में अपने बेगम की मलेरिया संबंधी शिकायत पर तोड़ डाला था। इससे हुए जलप्लावन के बीच जो टापू बना वह द्वीप कहा जाने लगा। वर्तमान में
यह मंडी द्वीप के नाम से जाना जाता है। इसके आस- पास आज भी
कई खंडित सुंदर प्रतिमाएं बिखरी पड़ी हैं। यहां मकर संक्रांति पर
मेला भी लगता है।
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