वास्तु पुरुष की कहानी
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Vastu shastra |
वास्तु शास्त्र में वास्तु पुरुष की एक कथा है। देवताओं और असुरों का युद्ध हो रहा था। इस युद्ध में असुरों की ओर से अंधकासुर और देवताओं की ओर से भगवान शिव युद्ध कर रहे थे। युद्ध में दोनों के पसीने की कुछ बूंदें जब भूमि पर गिरी तो एक अत्यंत बलशाली और विराट पुरुष की उत्पत्ति हुई। उस विराट पुरुष से देवता और असुर दोनों ही भयभीत हो गए। देवताओं को लगा कि यह असुरों की ओर से कोई पुरुष है। जबकि असुरों को लगा कि यह देवताओं की तरफ से कोई नया देवता प्रकट हो गया है। इस विस्मय के कारण युद्ध थम गया और अंत में दोनों उस विराट पुरुष को लेकर ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी ने उस पुरुष को अपने मानसिक पुत्र की संज्ञा दी और उनसे कहा कि इसका नाम वास्तु पुरुष होगा। वास्तु पुरुष वहाँ पर एक विशेष मुद्रा में शयन के लिए लेट गए और उनके कुछ हिस्सों पर देवताओं ने तथा कुछ हिस्सों पर असुरों ने अपना वास कर लिया। ब्रह्मा जी ने यह भी आदेश दिया कि जो कोई भी भवन, नगर, तालाब, मंदिर आदि का निर्माण करते समय वास्तु पुरुष को ध्यान में रख कर काम नहीं करेगा तो असुर लोग उसका भक्षण कर लेंगे। जो व्यक्ति वास्तु पुरुष का ध्यान रख कर कार्य करेगा, देवता उसके कार्य में सहायक होंगे। इस प्रकार वास्तु पुरुष की रचना हुई।
क्या है वास्तु पुरुष
देव शब्द का मूल अर्थ है ‘स्वयं में प्रकाशमान’। कोई भी ऐसी शक्ति जो किसी कार्य विशेष को करने में सहायक है, उसे देवmahavastu vastu purush कहा जाता है। देव तत्व क्या है? आप अपना या दूसरों का जीवन सुखी बनाने के लिए कुछ करने की मन से चाहत रखने लगे। यही रचनात्मक ऊर्जा है देव तत्त्व। परन्तु तभी अचानक एक द्वंद्व (कॉनफ्लिक्ट) आया कि यह कैसे हो सकता है? यह तो ऐसा हो ही नहीं सकता। अगर ऐसा हो गया तो हमें नुकसान हो जाएगा, आदि। यही डर और अज्ञान असुर तत्त्व है।
भगवान शिव और अंधकासुर का युद्ध महज प्रतीकात्मक है। वे पसीने की बूंदें इस युद्ध का संपूर्ण प्रयास (टोटल एफर्ट) हैं। उससे जिस व्यवस्था का निर्माण हुआ, वह वास्तु पुरुष है। ब्रह्मा जी ने स्पेस के एक हिस्से को, जहाँ संपूर्ण व्यवस्था का निर्माण हुआ, उस व्यवस्थित आकाश को अपने मानस पुत्र की संज्ञा दी। भवन का निर्माण होते ही संपूर्ण जगत को रचने वाली शक्तियाँ उस भवन में आ जातीं हैं। उसका अपना एक स्वरूप है, जिसे हम वास्तु पुरुष का नाम देते हैं।
वास्तु पुरुष का प्रभाव
यहां पर ब्रह्मांडीय मन (ब्रह्मा जी) ने आगे कहा कि जो व्यक्ति घर, तालाब, जलाशय, मंदिर, नगर व्यवस्था में इसका ध्यान नहीं करेगा, उसका असुर भक्षण करेगा। ध्यान का अर्थ है यदि उस व्यवस्था को समझते हुए आप कार्य नहीं करेंगे तो असुरों का भोजन बनेंगे। असुरों का भोजन होने का अर्थ है कि वहां पर जो नकारात्मक शक्तियां हैं, वे आपके भीतर भी क्रियाशील हो जाएंगी। वहां पर डर लगेगा, द्वंद्व आएगा, दुविधा आएगी और कार्य को करने के मार्ग में जो भी नकारात्मक प्रभाव है, वह जागृत हो जाएगा
क्या है वास्तु पुरुष
देव शब्द का मूल अर्थ है ‘स्वयं में प्रकाशमान’। कोई भी ऐसी शक्ति जो किसी कार्य विशेष को करने में सहायक है, उसे देवmahavastu vastu purush कहा जाता है। देव तत्व क्या है? आप अपना या दूसरों का जीवन सुखी बनाने के लिए कुछ करने की मन से चाहत रखने लगे। यही रचनात्मक ऊर्जा है देव तत्त्व। परन्तु तभी अचानक एक द्वंद्व (कॉनफ्लिक्ट) आया कि यह कैसे हो सकता है? यह तो ऐसा हो ही नहीं सकता। अगर ऐसा हो गया तो हमें नुकसान हो जाएगा, आदि। यही डर और अज्ञान असुर तत्त्व है।
भगवान शिव और अंधकासुर का युद्ध महज प्रतीकात्मक है। वे पसीने की बूंदें इस युद्ध का संपूर्ण प्रयास (टोटल एफर्ट) हैं। उससे जिस व्यवस्था का निर्माण हुआ, वह वास्तु पुरुष है। ब्रह्मा जी ने स्पेस के एक हिस्से को, जहाँ संपूर्ण व्यवस्था का निर्माण हुआ, उस व्यवस्थित आकाश को अपने मानस पुत्र की संज्ञा दी। भवन का निर्माण होते ही संपूर्ण जगत को रचने वाली शक्तियाँ उस भवन में आ जातीं हैं। उसका अपना एक स्वरूप है, जिसे हम वास्तु पुरुष का नाम देते हैं।
वास्तु पुरुष का प्रभाव
यहां पर ब्रह्मांडीय मन (ब्रह्मा जी) ने आगे कहा कि जो व्यक्ति घर, तालाब, जलाशय, मंदिर, नगर व्यवस्था में इसका ध्यान नहीं करेगा, उसका असुर भक्षण करेगा। ध्यान का अर्थ है यदि उस व्यवस्था को समझते हुए आप कार्य नहीं करेंगे तो असुरों का भोजन बनेंगे। असुरों का भोजन होने का अर्थ है कि वहां पर जो नकारात्मक शक्तियां हैं, वे आपके भीतर भी क्रियाशील हो जाएंगी। वहां पर डर लगेगा, द्वंद्व आएगा, दुविधा आएगी और कार्य को करने के मार्ग में जो भी नकारात्मक प्रभाव है, वह जागृत हो जाएगा
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